Skip to main Content
A+
A
A-
हिंदी
Authorised Login
Toggle navigation
Skip Navigation Links
Home
About Us
Subhash Palekar Natural Farming
Organisational Structure
Achievements
Schemes
Capacity Buliding Centres
Subsidy To Farmers
Other Assistances
Input Preperations
Four Wheels of SPNF
Pest Management
Naural Farming- Quick Start
Farmer Corner
Survey
FAQS
Bulletin
Success Stories
What Farmer Say
Registered Farmers
Resource Person
Reports
General Reports
Department Annual Reports
Contact Us
Bulletin
Home
Farmer Corner
Bulletin
वर्तमान परिदृश्य
29 जनवरी, 2018 को पालमपुर में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने ‘शून्य बजट प्राकृतिक कृषि परियोजना’ (Zero Budget Natural Farming Project) का शुभारंभ किया।
लक्ष्य
परियोजना का लक्ष्य वर्ष 2022 तक कृषि उत्पादन एवं किसानों की आय बढ़ाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण का अनुसरण करना है।
महत्वपूर्ण तथ्य
परियोजना के तहत ऐसी प्राकृतिक कृषि पद्धतियों का विकास करना है जिससे फसल उत्पादन की लागत शून्य होती है।
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि परियोजना जैविक खेती से भिन्न है।
प्राकृतिक कृषि में बिना किसी उर्वरक एवं कीटनाशक के फसल की प्राकृतिक वृद्धि पर बल दिया जाता है।
परियोजना के तहत मौद्रिक निवेश लगभग नगण्य है।
परियोजना में ‘जीवामृत’ (Jeevamrutha) एवं ‘बीजामृत’ (Beejmrutha) के उपयोग की परिकल्पना की गई है।
‘शून्य बजट’ से तात्पर्य सभी फसलों के उत्पादन की शून्य शुद्ध लागत से है जिसका अर्थ है कि किसानों को फसल उत्पादन के लिए उर्वरकों एवं कीटनाशकों पर खर्च करने की आवश्यकता नहीं है।
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि का उद्देश्य रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग का उन्मूलन करना और जैविक (Biological) कीटनाशकों को बढ़ावा देना है।
किसानों को फसल संरक्षण के लिए गोबर, पौधों एवं मानव का अपशिष्ट, केंचुआ आदि जैविक उर्वरकों के उपयोग की सलाह दी जाती है।
इस प्रणाली में न केवल अपरदन से मिट्टी की रक्षा होती है बल्कि मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में भी मदद मिलती है।
साथ ही किसानों की फसल उत्पादन लागत में कमी आती है और उनकी आय में वृद्धि होती है।
हिमाचल में वर्ष 2022 तक प्रदेश के 9.61 किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को अपनाएंगे
कृषि एवं बागवानी में बेहतर पैदावार पाने के लिए मंहगे खरपतवारों और कीटनाशकों के प्रयोग से कृषि लागत में बेतहाशा बढोतरी हो रही है। कृषि लागत बढने के साथ किसानों की आय घटती जा रही है। जिसके चलते लाखों किसान खेती-बाड़ी को छोड़कर शहरों की तरफ रोजगार पाने के लिए रूख कर रहे हैं। कृषि-बागवानी में रसायनों और कीटनाशकों का प्रयोग बढने से मानव स्वास्य के साथ पर्यावरण पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। किसानों में खेती-बाड़ी के प्रति रूचि को बढाने और कृषि लागत को कम कर उनकी आर्थिक स्थिति को बढाने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना को लागू कर एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। 9 मार्च 2018 को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस योजना की घोषणा अपने बजट भाषण में की और इसके लिए 25 करोड़ का बजट प्रावधान भी किया गया। योजना को लागू करने के लिए महाराष्ट्र के कृषि वैज्ञानिक सुभाष पालेकर की कृषि विधि को प्रदेश के हरेक किसान तक पहुंचाने के लिए उनके नाम से 14 मई 2018 को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती पद्धति को प्रदेश में शुरू है। इसे लागू करने के साथ ही हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक खेती को अपनाने वाला दूसरा राज्य बन गया है। इससे पहले आंध्र प्रदेश में जीरो बजट नेचुरल फॅार्मिंग को शुरू किया गया है। गौर रहे कि कृषि बागवानी एवं इससे संबंद्ध क्षेत्र हिमाचल प्रदेश की सकल घरेलू आय में 10 प्रतिशत का योगदान एवं 69 प्रतिशत जनसंख्या को रोजगार प्रदान कर रहे हैं। प्रदेश में कुल 9.61 लाख किसान परिवार 9.55 लाख हैक्टेयर भूमि पर खेती कर रहे हैं, जिसमें केवल 18 फिसदी ही सिंचित क्षेत्र है। ऐसे में सरकार ने प्रदेश के सभी किसानों को वर्ष 2022 तक प्राकृतिक खेती से जोड़ने का लक्ष्य रखा है ताकि किसानों की आय बढने के साथ प्रदेश की सकल घरेलू आय में भी बढोतरी हो सके।
2547 किसानों ने शुरू की प्राकृतिक खेती
इस समय हिमाचल प्रदेश में 2547 किसानों ने 240 हैक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती पद्धति के तहत खेती-बाड़ी शुरू कर दी है और इन किसानों की ओर से पैदा किए जा रहे खाद्य उप्तादों को मार्केट में सही दाम मिल रहे हैं। जिससे अन्य किसानों की रूचि भी प्राकृतिक खेती की ओर बढ रही है। सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को प्रदेश में शुरू करने से पहले सरकार ने इस खेती पद्धति के जन्मदाता सुभाष पालेकर के दो मेगा ट्रेनिंग प्रोग्राम करवाए हैं। इनमें मेगा ट्रेनिंग प्रोग्राम में 1563 किसानों को प्रशिक्षण दिया गया है। इसके अलावा किसानों, और कृषि विभाग के अधिकारियों को फिल्ड में प्रैक्टिकल नाॅलेज देने के लिए झांसी और कुरूक्षेत्र का दौरा भी करवाया गया है। किसानों को इस पद्धति के बारे में जागरूक करने के लिए सभी विकास खंडों की 3226 पंचायतों में एक दिवसीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें 8417 किसानों ने प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी प्राप्त की। इसी तरह प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में किसानों को जागरूक करने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाए गए हैं जिनके तहत अभी तक 18 हजार से अधिक किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के बारे में जागरूक किया गया है। सरकार ने वर्ष 2018 के लिए 500 किसानों को प्राकृतिक कृषि के तहत लाने का लक्ष्य रखा था, जिसे पूरा करते हुए कृषि विभाग ने 2047 किसानों को इससे जोड़ दिया है जबकि वर्ष 2019 में 50 हजार किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने का लक्ष्य रखा है।
किसानों को ये सुविधांए देगी सरकार
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को अपनाने वाले किसानों को सरकार अनेक सुविधांए देगी। हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत की ओर से सराहनिय पहल शुरू की गई है। राज्यपाल का कहना है कि इस योजना से जुड़ने वाले किसानों को देसी नस्ल की गाय खरीदने के लिए 25 हजार की राशि दी जाएगी। इसके अलावा गौशाला के नालीकरण, खेती में प्रयोग होने वाले घनजीवामृत, जीवामृत को तैयार करने के लिए ड्रम दिए जा रहे हैं। किसानों के उप्तादों को बेचने के लिए ब्लाॅक स्तर पर दुकान मुहैया करवाने की योजना पर भी काम किया जा रहा है। इसके अलावा इस योजना से जुड़ने वाले किसानों के लिए प्रशिक्षण और एक्सपोजर विजिट का आयोजन भी समय-समय पर किया जाएगा।
कौन हैं सुभाष पालेकर ?
प्राकृतिक खेती पद्धति के जनक सुभाष पालेकर महाराष्ट्र में पिछले दो दशकों से कृषि में बिना किसी रसायनिक खादों और कीटनाशक के खेती कर रहे हैं। इन्होंने खेती की प्राकृतिक पद्धति को इजात किया है जिसमें देसी नस्ल की गाय के गोबर और गोमूत्र के प्रयोग खेती में प्रयोग होने वाले जीवामृत, घनजीवामृत, बीजामृत और कीट-पतंगों और बीमारियों से खेती केा बचाए रखने के लिए दवाईयों को तैयार किया जाता है। सुभाष पालेकर की प्राकृतिक खेती पद्धति में बाजार से कुछ भी सामान को लाने की आवश्यक्ता नहीं होती है जिससे कृषि में लागत शून्य के बराबर होती है। कृषि के क्षेत्र में की गई इस बेहतरिन खोज को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2016 में सुभाष पालेकर को पदमश्री अवार्ड से नवाजा है। इतना ही नहीं सुभाष पालेकर की खेती पद्धति को यूनाइटेड नेशन में भी सराहना प्राप्त हो चुकी है।
जैविक खेती से अलग है प्राकृतिक खेती
प्राकृतिक खेती को कई लोग जैविक खेती के साथ जोड़कर देख रहे हैं जो कि गलत है। प्राकृतिक खेती कई मायनों में जैविक खेती से अलग है। जैविक खेती में गाय के गोबर का प्रयोग खाद के रूप में किया जाता है, इसमें भारी मात्रा में गाय के गोबर का प्रयोग किया जाता है। जबकि प्राकृतिक खेती में देसी गाय के गोबर का प्रयोग जैविक खाद के मुकाबले में नाम मात्र का किया जाता है। जैविक खेती पद्धति में देखा गया है कि जो किसान इसे शुरू करते हैं तो शुरूआत के कुछ वर्षाें में उप्तादन में कमी देखी जाती है। जबकि प्राकृतिक खेती में पहले ही वर्ष में उप्तादन में बढोतरी देखी गई है और साल दर साल मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढने के साथ उप्तादन में भी बढोतरी होती रही है। जैविक खेती को भी रसायनिक खेती की तरह बहुत खर्चिला माना गया है, जबकि प्राकृतिक खेती में देसी गाय के गोबर और गोमूत्र व कुछ घरेलू सामग्री के प्रयोग से ही खेती को किया जाता है। ऐसे में कृषि की लागत शून्य के बराबर रहती है।
रसायनों से दूषित हो रहे खाद्यान
आज खादों एवं अन्य रासायनों के अंधाधुंध प्रयोग से किसानों की साख आम-उपभोक्ता बाजार में घटी है। स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील उपभोक्ताओं में यद्यपि सामान्य खाद्यान के अतिरिक्त फल सब्जियों की मांग बढी है, लेकिन रासायन दूषित होने के संदेह के कारण भवभीत हैं। पीजीआई चंडीगढ और ब्लूमबर्ग जन स्वास्थ्य स्कूल अमेरिका के एक संयुक्त अनुसंधान में पंजाब के कपास बहुल खेती वाले ग्रामीण इलाकों के 23 प्रतिशत किसानों के खून एव पेशाब में विभिन्न किटनाशकों के अंश मिले हैं। इसका डिप्रेशन, उच्च रक्तचाप, घबराहट, थकान, अनिद्रा, बेहोशी इत्यादि बीमारियों से सीधा सम्बंध है। ऐसे समय में जैविक कृषि उप्ताद से एक आशा जगी थी लेकिन हाल ही में कुछ वैज्ञानिक अध्ययन तथा तथ्य इसे नकार रहे हैं। जैविक खेती गोबर के अधिकतम प्रयोग एवं वर्मी कंपोस्ट आधारित है। खेती में जब गोबर का हम अधिकतम प्रयोग करते हैं तो सूर्य की रोशनी एवं सामान्य तापमान जब 20 डिग्री सेल्सीयस से उपर जाता है तो यह पर्यावरण में विभिन्न जहरीली गैसें जैसे कार्बन मोनो डाइआक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड और मिथेन इत्यादि का उत्सर्जन कर मौसम बदलाव में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। इसे देखते हुए अब कृषि के क्षेत्र में लोगों को बेहतर खाद्यान मुहैया करवाने के लिए प्राकृतिक खेती ही एकमात्र विकल्प है।
ब्लॉक स्तर पर किसानों को दिया जाएगा प्रशिक्षण
प्राकृतिक खेती को लेकर ब्लॉक स्तर पर किसानों को दिया जाएगा प्रशिक्षण
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को लेकर जिला और ब्लॉक स्तर के अधिकारियों के साथ बनाई कार्य योजना
प्रदेश में शुरू की गई सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के बारे में किसानों को जागरूक करके उन्हें इस खेती पद्धति के तहत जोडने के लिए ब्लॉक स्तर पर दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएंगे। इसके लिए सभी जिलों के कृषि और आत्मा परियोजना के अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं। सोमवार को शिमला में सभी जिलों के कृषि अधिकारी, आत्मा अधिकारी और खंड तकनिकी प्रबंधक एवं सहायक तकनिकी प्रबंधकों के लिए एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस मौके पर प्रदेश भर से आए 160 से अधिक अधिकरियों से उनके ब्लॉक और जिलों की स्थिति के बारे में रिपोर्ट ली गई। इस मौके पर प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के राज्य परियोजना निदेशक राकेश कंवर ने अधिकरियों से अभी तक इस परियोजना में हुए कार्य की रिपोर्ट ली। उन्होनें अधिकारियों को ब्लॉक स्तर और पंचायत लेवल में योजनाबद्ध तरीके से काम करने के निर्देश दिए। राकेश कंवर ने कहा कि इस योजना के तहत इस वर्ष 50 हजार किसानों को जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। इसलिए अब ब्लॉक स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएंगे ताकि इस लक्ष्य को पूरा किया जा सके। खरीफ सीजन शुरू होते तक 25 हजार किसानों को जोड़ा जाएगा
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती योजना के कार्यकारी निदेशक डॉ राजेश्वर सिंह चंदेल ने बताया कि इस कार्यशाला में आए अधिकारियों से फिल्ड की रिपोर्ट लेने के साथ भविष्य की योजनाओं के बारे में भी प्लान लिया गया है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 में इस योजना के तहत 500 किसानों को जोड़ने का लक्ष्य रखा गया था। जिसका पिछा करते हुए दिसंबर तक 2547 किसानों ने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को अपना लिया है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष इस योजना के तहत 50 हजार किसानों को जोड़ा जाएगा। इसलिए आज की कार्यशाला में खरीफ सीजन तक 25 हजार किसानों को जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए ब्लॉक स्तर पर प्रशिक्षण के साथ 8-10 पंचायतों के किसानों के अलग-अलग समुह बनाकर प्रशिक्षण के साथ जो किसान प्राकृतिक खेती के अच्छे मॉडल खडे़ कर चुके हैं वहां के किसान भ्रमण कार्यक्रम चलाए जाएंगे।
किसानों को दिया जाएगा प्रोत्साहन
राज्य परियोजना निदेशक राकेश कंवर ने कहा कि जो किसान बहुत अच्छा कर रहे हैं और जो अन्य किसानों को भी प्रशिक्षण दे रहे हो उन्हें मास्टर टेनर के तौर पर विकसित करने के साथ उन्हें प्रोत्साहन राशि देने की दिशा में काम किया जा रहा है। राकेश कंवर ने कहा कि प्राकृतिक खेती को अपना चुके किसानों को देसी नस्ल की गाय खरीदने के लिए सब्सीडी दी जाएगी। इसके लिए सरकार की ओर से भी घोषणा की जा चुकी है। इसके अलावा किसानों के उत्पादों को सही मार्केट देने के लिए ग्रामीण हाट खोली जाएगी इसके लिए सरकार की ओर से योजना तैयार की जा रही है।
परिवार में बिमारियों से तंग आकर छोड़ी रसायनिक खेती, अब प्राकृतिक खेती कर पाया मुकाम - शोभा देवी
सब्जियों उगाकर परिवार को भरण-पोषण करने वाली शोभा देवी के परिवार के लोग जब आए दिन बीमार रहने लगे तो उन्होंने खेतों में प्रयोग होने वाले रसायनों को बंद करने का फैसला लिया। शोभा देवी बताती हैं कि सब्जियों में अच्छी पैदावार और कीटों से रक्षा के लिए वे इसमें जमकर खादों और कीटनाशकों को प्रयोग करते थे। जिसका असर परिवार वालों की सेहत पर होने लगा था। इसलिए परिवार और लोगों के स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने के लिए उन्होंने जैविक खेती करना शुरू किया। लेकिन जैविक खेती में अधिक मात्रा में खाद और इसके मंहगे होने के साथ इसमें उप्तादन कम हो गया। इसके बाद उन्होंने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण इसके जन्मदाता सुभाष पालेकर से पालमपुर विश्वविद्यालय से लिया और अब वे अपनी 4 कनाल भूमि में प्राकृतिक खेती विधि से खेती कर रही हैं और हर साल लाखों की आय कमा रही हैं। शोभा देवी बताती हैं इस खेती विधि के पहले ही साल में उनके उत्पादन में किसी प्रकार की कमी नहीं आई है। वे बताती हैं कि जहां पहले रसायनों और खादों के लिए हजारों रुपए खर्च करने पड़ते थे वे भी बच रहे हैं साथ ही जहरमुक्त होने के चलते बाजार में उनकी सब्जियां जल्दी और अच्छे दामों में बिक रही हैं। शोभा देवी का नाम अब कांगड़ा जिले के सफल किसानों की सूचि में शामिल हो चुका है और अब वे जिले और प्रदेश भर में होने वाले किसान मेलों में अपने उत्पादों की प्रदर्शनी भी लगा रही हैं। शोभा देवी से प्रेरणा पाकर प्रदेश के कई किसान सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की ओर आकर्षित हुए हैं ओर वे इसे अपना भी रहे हैं।
1 लाख की नौकरी छोड़ इंजीनियर ने शुरु की खेती, दूसरों के लिए बना प्रेरणा स्त्रोत - मनजीत
मनजीत के फार्म को देखने के लिए आ रहे पास के जिलों के लोग
एक तरफ जहां किसानों में खेती से मोहभंग होता जा रहा है, वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जो जमी-जमाई लाखों की नौकरी को छोड़ खेती-बाड़ी में आधुनिक उपकरणों का प्रयोग कर लाखों की कमाई कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है उना जिले के मनजीत सिंह ने। एमटेक तक पढे मनजीत सिंह इन प्राकृतिक खेती कर रहे हैं और हर महिने अच्छी आमदनी कर रहे हैं। मनजीत ने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती पद्धति को अपनाकर जहां कृषि की लागत को कम कर मुनाफे को बढाया है वहीं दूसरी ओर खेती का न्यू ट्रेंड्स लाकर अन्य किसानों को भी खेती-बाडी के लिए प्रेरित किया है। मनजीत के खेती माडल को देखने के लिए आस पास के गांव के युवा भी उनके फार्म की ओर रूख कर रहे हैं।
प्राकृतिक खेती पद्धति को शुरू करने वाले मनजीत के मन में भी अन्य किसानों की तरह कई सवाल थे, लेकिन कुछ नया करने की चाह और सही प्रशिक्षण के दम पर अब वे सूबे के किसानों में एक उदाहरण के तौर पर उभरे हैं। मनजीत सिंह ने बताया कि जब-जब वे नौकरी से अपने गांव सिहाणा वापस आते थे, तो गांव में केवल बुजुर्ग ही देखकर उन्हें बहुत दुख होता था। इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़कर खेती-बाड़ी को अपनाने का मन बनाया और अपने खेतों में खेती करना शुरू कर दिया। लाखों की नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने गांव वालों के ताने तो सूनने को मिले ही साथ में घरवालों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। लेकिन पक्का इरादा होने के चलते मनजीत ने कृषि विभाग की ओर से चलाई जा रही कृषि योजनांओं की जानकारी लेकर पाॅलीहाउस में प्राकृतिक खेती शुरू कर दी। प्राकृतिक खेती शुरू करने से पहले उन्होंने इस पद्धति के जनक पदमश्री सुभाष पालेकर से एक सप्ताह का प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण प्राप्त करने के तुरंत बाद उन्होंने अपने पाॅलीहाउस में टमाटर, मटर, हरा धनिया, गोभी, शिमला मिर्च और ब्रोकली की खेती शुरूआत कर दी। मनजीत बताते हैं कि शुरूआत के दिनों में ही उन्हें अच्छे परिणाम देखने को मिले और इस पद्धति में लागत कम होने के चलते उनके मुनाफे में कई गुणा बढोतरी हुई है।
स्वास्थ्य पर नहीं कोई असर
मनजीत ने बताया कि प्राकृतिक खेती से उनके स्वास्थ्य को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंच रहा है। जबकि पहले वे जब वे सब्जियों को खरपतवारों और कीटों से बचाने के लिए मंहगे कीटनाशकों का प्रयोग करते थे, तो उनके सिर में तेज दर्द हुआ करता था। उन्होनें बताया कि कीटनाशकों के प्रयोग करने के बाद दो दिन तक सिर दर्द के साथ सिर चक्कराना और उल्टी आती थी। लेकिन अब प्राकृतिक खेती को अपनाने के बाद सब्जियों में अपने आप तैयार किए कीटनाशकों के छिड़काव से स्वास्थ्य में किसी प्रकार का असर नहीं पड़ रहा है। मनजीत ने बताया कि प्राकृतिक खेती न सिर्फ खेती करने वाले किसानों का स्वास्थ्य सही रह रहा बल्की इससे उपभोक्ताओं को जहरमुक्त खाद्य सामग्री भी मिल रही है। वहीं इससे मिट्टी के स्वास्थ्य में भी सुधार हो रहा है। मनजीत बताते हैं कि खेतों में जीवामृत और घनजीवामृत डालने से मिटृटी भूरभूरी हो रही है और खेतों में सिंचाई के माध्यम से दी जाने वाली हरेक बूंद अब धरती में जा रही है। जबकि खाद और रसायनों के प्रयोग से मिट्टी के उपर एक पपड़ी जैसी तैयार हो जाती थी, जिससे सिचंाई के दौरान पानी धरती में न रिस कर बह जाता था।
बाजार में मिल रहे सही दाम
मनजीत सिंह ने बताया कि उन्हें अपनी उगाई हुई सब्जियों को बाजार ले जाने की जरूरत भी नहीं पड़ रही है, लोग उनके फार्म में आकर ही सब्जियां खरीद कर चले जाते हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने कुछ और किसानों को भी प्राकृतिक खेती के लिए प्रेरित किया है और अब भविष्य में वे उनके साथ मिलकर उना के बंगाणा ब्लाॅक में प्राकृतिक उप्तादों की एक दुकान शुरू करेंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक प्राकृतिक उप्ताद पहुंच सके। वहीं प्रदेश सरकार की ओर से भी सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को अपनाने वाले किसानों के खाद्य उप्तादों को बाजार मुहैया करवाने के लिए कार्य किया जा रहा है। सरकार की ओर से ब्लाॅक स्तर पर प्राकृतिक खेती संसाधन भंडार खोलने की दिशा में काम किया जा रहा है। मनजीत बताते हैं कि जब उन्होंने यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर की नौकरी छोड़ी थी जो उन्हें पांच लाख रुपए का सालाना पैकेज मिल रहा था और नौकरी छोड़ने पर लोगों ने उन्हें कई बातें कही थीए लेकिन आज खेती करती बार उन्हें किसी तरह का पछतावा नहीं है और वे अपने सालाना पैकेज से काफी बेहतर कमा रहे हैं।
घर-परिवार से लड़कर शुरू की खेती.बाड़ी अब जिले के सफल किसानों में शूमार - संजय
पढाई के बाद कुछ दोस्तों के साथ शुरू की सब्जियों की खेतीए अब लाखों कमा रहे। ग्रेजुएशन करने के बाद संजय के ज्यादातर दोस्तों में से कुछ तो नौकरी करने के लिए शहर चले गए और कुछ आगे की पढाई करने के लिए चंडीगढ या शिमला की अेार रूख कर गए। ऐसे में सोलन जिला के कुनिहार क्षेत्र के संजय कुमार ने कृषि को व्यवसाय के तौर पर लिया और गांव में अपने पुरखों की जमीन पर पुराने ढर्रे पर चल रही खेती को बदलकर आधुनिक खेती करने का निर्णय लिया। संजय के इस फैसले का उनके परिवार वालों ने कड़ा विरोध किया और उन्हें नौकरी करने और पढाई जारी रखने के लिए कई बार कहा। लेकिन संजय ने अपने घरवालों से लड़कर खेती बाडी शुरू की और तब से लेकर आज तक कभी भी पिछे मुडकर नहीं देखा। आज संजय कुमार अपने खेतों में हर साल लाखांे की सब्जियां उगा रहे हैं और अपने जिले के साथ प्रदेश के नामी किसानों की सूची में शामिल हो गए हैं। संजय कुमार बताते हैं कि उन्होंने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को अपनाकर कृषि लागत को कम किया है और इससे उनके मुनाफे में बढोतरी हुइ्र है। वे बताते हैं कि वे कृषि के क्षेत्र में हो रहे बदलावों और आए दिन आ रही नए तकनिक को अपनाने में कभी भी संकोच नहीं करते हैं। वे बताते हैं कि एक साल पहले तक वे रसायनिक खेती कर रहे थे और अपने खेतों में अच्छी पैदावार के लिए जमकर रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग करते थे। इससे उनकी कृषि लागत में हर साल बढोतरी हो रही थीए जबकि मुनाफा कुछ थम सा गया था। इसी के चलते उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाया और इसे अपनाने के साथ अब इस साल उनकी कृषि लागत नाम मात्र की रह गई है। सफल किसान के नाम से पहचाने वाले संजय कुमार को अब प्राकृतिक खेती शुरू करने वाले किसान के नाम से भी जाना जाने लगा है। उनके खेती माॅडल को देखने और सीखने के लिए कई किसान उनके पास आ रहे हैं। इतना ही नहीं हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग भी अन्य किसानों को संजय कुमार के खेतों में ले जाकर प्राकृतिक खेती के बारे में लोगों को जागरूक कर रहा है।
खेती में जरूरत थीए इसलिए पंजाब से लाए देसी नस्ल की गाय
प्राकृतिक खेती में देसी नस्ल की गाय की जरूरत को पूरा करने के लिए संजय पंजाब से साहिवाल नस्ल की गाय खरीदकर लाए हैं। संजय का कहना है कि जब प्राकृतिक खेती करनी ही है तो फिर इसे पूरे तन.मन से किया जाना चाहिए। खेतों में प्रयोग होने वाले जीवामृतए बीजामृतए घनजीवामृत और कीटनाशकों को तैयार करने में देसी गाय के गोबर और गोमूत्र की जरूरत रहती है। इसलिए इस जरूरत को पूरा करने के लिए मैनें 60 हजार रुपए खर्च कर साहिवाल नस्ल की गाय खरीदी है। इससे मुझे खेती.बाड़ी के लिए गोबर और गोमूत्र तो मिल ही रहा हैए साथ में यह दूध भी अच्छा देती है जिससे घर में दूध की जरूरत भी पूरी हो रही है। संजय बताते हैं कि उन्होंने अपने साथ कुछ अन्य किसानों को भी जोड़ा है। वे इन किसानों को अपनी गाय का गोबर और गोमूत्र देने के साथ उन्हें समय.समय पर खेती से सबंधित जरूरी जानकारियां भी देते रहते हैं। संजय का कहना है कि अब उन्होंने अपने दोस्तों के साथ एक समूह बनाया है और यह समूह अपने खेतों में पैदा होने वाली सब्जियों को बाजार में अपने तय किए हुए दामों में बेचते हंै। उन्होंने बताया कि उनकी सब्जियों को बाजार में प्राकृतिक उप्ताद होने के नाते सही दाम मिल रहे हैं। जिसे देखकर अन्य किसान भी प्राकृतिक खेती को अपनाने लगे हैं।