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देशी गाय के नस्ल का चुनाव क्यों करें
देशी गाय की नस्ल का चुनाव इसलिए इसलिए करना चाहिए क्योंकि हजारो सालों से अपने क्षेत्र में होने वाले भौगोलिक, वहां की आबोहवा और पर्यावरणीय बदलाव से देशी गाय खुद को ढाल चुकी होती है। इससे उसके शरीर में प्रतिरोध शक्ती भी बहुत अच्छी होती है और खेती मे अच्छे काम कर सकती है। जैसे पहाड़ी क्षेत्र की गाय और उत्तर भारत की गाय इन दोनो की आदतो में बहुत बदलाव होता है। पहाड़ी क्षेत्र के बैल पहाड़ी क्षेत्र की खेती में होने वाले निचे उप्पर चढ़कर जोताई के काम बड़ी सरलता से करते है। क्योंकी उनको उस भौगोलिक क्षेत्र की आदत होती है। इसलिए आप उतरी भारत की नस्ल ही उत्तर भारत मे उपयोग मे लाए और दक्षिण भारत की नस्लें दक्षिण भारत में ही उपयोग मे लाएं।
प्रति एकड़ कम से कम कितना गोबर जीरो बजट अध्यात्मिक कृषी में लेना चाहिए
1000 किलो, 900 किलो ऐसे बड़ी मात्रा की कोई जरूरत नहीं। हर फसल के लिए केवल प्रति एकड़ 10 किलो, देशी गाय का गोबर महिने में एक बार पर्याप्त है। दस किलो गोबर के उपर कुछ भी डालने की जरूरत नहीं। दस किलो गोबर हम खाद के रूप् में नहीं डाल रहे हैं, अनंत कोटी उपयोगी सूक्ष्म जीवाणूओं के जामन के रूप में डाल रहे हैं।
देशी गाय एक दिन में औसतन कितना किलो गोबर देती है
देशी गाय एक दिन में औसतन 11 किलो, गोबर देती है। देशी बैल एक दिन में 13 किलो, गोबर देता है और भैंस एक दिन में औसतन 15 किलो, गोबर देती है ।
क्या हम बैल और भैंस का गोबर की अलग अलग मात्रा उपयोग में लाई
अगर आपके पास देशी बैल है, तो आधा देशी बैल का गोबर चलेगा। लेकिन, केवल देशी बैल का गोबर नहीं चलेगा, अगर आपके पास भैस है, तो आधा देशी गाय का गोबर और आधा देशी गाय का गोबर चलेगा। लेकिन, केवल भैंस का गोबर नहीं चलेगा।
भारतीय खेती में देशी गाय का महत्व क्यों चला आ रहा है
भारतीय खेती का इतिहास लगभग साड़े दस हजार साल का है। इन साड़े दस हजार सालों के दरम्यान पहले पांच हजार साल तक भारतीय खेती में देशी गाय के गोबर का उपयोग नही होता था। इन पांच हजार साल में स्थलांतरित खेती होती थी। पदम् श्री सुभाष पालेकर के अनुसार देशी गाय के गोबर का और गोमुत्र का उपयोग खेती करने में तंत्र विकसित करने वाला मानवी इतिहास में पहला कृषि वैज्ञानिक योगेश्वर श्रीकृष्ण है। गाय के गोबर का उपयोग मात्र योगेश्वर श्री कृष्ण के समय से ही हो रहा है। यशोदा मां ने बाल कृष्ण को सांदीपन ऋषि के आश्रम में शिक्षा लेने के लिए भेज दिया। उन्होने किशन कन्हैया को गायों का व्यवस्थापन करने के लिए लगा दिया। शिक्षा समाप्त होने के बाद जब वे गोकुल लौट आये और अपना वही पुराना गायों को लेकर जंगल में चराने का सिलसिला चालु कर दिया। तब से जंगल बंद हुए और पर्यावरण का बचाव हुआ और प्राचीन भारतीय गोआधारित खेती का फैलाव आगे पुरी दूनिया में हो गया। तब से आज तक हमारे देश में गोअधारित खेती ही होती आ रही हैं।