सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती-संकल्पना
न्यूनतम लागत, अधिक उपज, उच्च गुणवत्ता, स्वस्थ पर्यावरण, जहर - रोग - कीट - प्राकृतिक संकट - कृषि कर्ज एव चिंता मुक्त के साथ-साथ किसान-बागवान को समृद्ध, खुशहाल एवं स्वावलम्बी बनाने वाली खेती ही-सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती है।
प्राकृतिक खेती, किसानों की खेती के लिए आवश्यक आदानों की बाजारी खरीद को एकदम से खत्म करती है। इस विधि की यह परिकल्पना है कि किसान सभी आवश्यक आदान घर या इसके आसपास उपलब्ध संसाधनों द्वारा ही बनाएगा। इन सभी क्रियाओं का इसलिए शून्य लागत प्राकृतिक खेती' नामकरण किया गया है जिसमें 'शून्य लागत' का अभिप्राय है कि फसल में आदान आवश्यकता हेतु बाजार से कुछ भी नहीं खरीदना।
प्राकृतिक खेती के संचालन के 4 चक्र
प्राकृतिक खेती के 4 सिद्धांत
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का मूल सिद्धांत है कि वायु, पानी तथा जमीन में सभी आवश्यक पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इसलिए फसल या पेड़-पौधों के लिए किसी भी बाहरी रसायनिक खाद की आवश्यकता नहीं है। यह प्राकृतिक खेती विधि, मित्र कीट-पतंगों की संख्या में वृद्धि एवं अनुकूल वातावरण का निर्माण कर फसलों को शत्रु कीट-पतंगों एवं बीमारियों से सुरक्षित करती है। इस तरह किसी भी कीटनाशक या फफूंदनाशक की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। जीवामृत और घनजीवामृत का प्रयोग भूमि में सूक्ष्म जीवाणुओं तथा केंचओं की गतिविधियों को बढ़ाता है। जो इसमें बंद अवस्था में उपस्थित विभिन्न पौष्टिक तत्वों को उपलब्ध अवस्था में बदलकर समय-समय पर आवश्यकतानुसार पौधों को उपलब्ध करवाते हैं। इस तरह सक्ष्म जीवाणओं तथा स्थानीय केंचओं की गतिविधियों की सक्रियता से भूमि की उर्वरा शक्ति हमेशा-हमेशा के लिए बनी रहती है।
इस प्राकृतिक खेती की मूल आवश्यकता पहाड़ी या कोई भी भारतीय नस्ल की गाय है। इन नस्लों की गाय के गोबर में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या दूसरी विदेशी किस्म की गायों या अन्य जानवरों की तुलना में 300 से 500 गुणा अधिक है। अत: इस विधि में अधिकतम लाभ लेने के लिए विभिन्न आदान पहाड़ी या किसी भी भारतीय नस्ल की गाय के गोबर तथा मूत्र से बनाए जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में इस प्राकृतिक खेती के प्रचार, प्रशिक्षण एवं क्रियान्वयन हेतु एक व्यापक योजना से कार्य प्रारम्भ हो चुका है। माननीय राज्यपाल के मार्गदर्शन एवं मुख्यमंत्री जी की अध्यक्षता में एक सर्वोच्च समिति का गठन हुआ है। इस समिति के प्रबोधन में 'राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई' कार्य कर रही है। कृषि विभाग के आतमा परियोजना के अधिकारियों द्वारा जिला स्तर पर इस परियोजना का संचालन किया जा रहा है।
प्रतिवर्ष एक निश्चित लक्ष्य को लेते हुए सन् 2022 तक प्रदेश के सभी 9.61 लाख किसान परिवारों को इस खेती विधि से जोड़ना है। अभी तक प्रदेश के सभी जिलों के 80 विकास खण्डों में इस विधि द्वारा उत्कृष्ट मॉडल खड़े कर किसानों को इनमें भ्रमण करवाया जा रहा है। चालु वर्ष में प्रदेश की सभी 3,226 पंचायतों तक इस लक्ष्य को पहुँचाने का प्रयास किया जाएगा।
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